राह का मजमूँ समझेगा क्या
क्या कभी खुद से भी सुलझेगा क्या
दिन में हारा खुदी से था इन्सां
रात भर अब शर्त पे बदेगा क्या
दिल में जलती हुई नफ़स रख कर
राज़ फिर शौक कोई बनेगा क्या
खुद से मिल कर सफर में वीरां पर
राह भर तुझसे फिर बचेगा क्या
बह गयी शाम मय के प्यालों पर
होश का पैर ठहर सकेगा क्या
खुद से हारा है बारहा लेकिन
शर्त अब चीज़ तू बदेगा क्या
पास आ छू रही नज़ा अब क्या
जन्म दर जन्म प्यार करेगा क्या
~ सूफ़ी बेनाम
नज़ा - last breath
क्या कभी खुद से भी सुलझेगा क्या
दिन में हारा खुदी से था इन्सां
रात भर अब शर्त पे बदेगा क्या
दिल में जलती हुई नफ़स रख कर
राज़ फिर शौक कोई बनेगा क्या
खुद से मिल कर सफर में वीरां पर
राह भर तुझसे फिर बचेगा क्या
बह गयी शाम मय के प्यालों पर
होश का पैर ठहर सकेगा क्या
खुद से हारा है बारहा लेकिन
शर्त अब चीज़ तू बदेगा क्या
पास आ छू रही नज़ा अब क्या
जन्म दर जन्म प्यार करेगा क्या
~ सूफ़ी बेनाम
नज़ा - last breath
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.