बह्र हो नज़्म को, ग़ज़ल में ज़िक्र आ जाये हर्फ़ की अदाओं से, लबों पे शीरीं आ जाये ये ही नियाज़-ए-इश्क़ है इन राहों पे अगर ज़िक्र तेरा शौक हो, मेरी नज़्म कलम आ जाये। ~ सूफी बेनाम
हर्फ़ - letter, शीरीं - sweetness
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