Monday, February 29, 2016
मर्ज़ पाला है क्या चिलमनों के लिए
मर्ज़ पाला है क्या चिलमनों के लिए
दोस्ती दुश्मनी आशिकों के लिए
क्या है फुर्सत नहीं गुज़रों के लिए
रहते हमराज़ हो आबिदों के लिए
आसमां शुक्र था आज की शाम भी
पर तू तनहा नहीं शोखियों के लिए
अब दफ़न दोस्ती दुश्मनी गम सभी
साँस औ ज़िन्दगी मनचलों के लिए
उस अब्र में बसी धूप थी छाँव थी
है ये कौसर नहीं मज़हबों के लिए
शोख जो फ़िर रहे कुछ नए के लिए
बंधते आगोश में मंज़िलों के लिए
ओंठ से छू दिया हमको शायर किया
तुम थे आशिक बने शायरों के लिए
तुम भी कह दोगे जब मिलोगे कभी
कि ये दोस्ती रहे दोस्तों के लिए
शुक्र था चाँद का रात को जग गया
अखतरों में छिपे रास्तों के लिए
चूमता रह गये तेरे हर लफ्ज़ को
तू मुसलमां बना आयतों के लिए
किस आगोश में सिमटा रह गया
रात बेनाम थी हौसलों के लिए
~ सूफी बेनाम
दोस्ती दुश्मनी आशिकों के लिए
क्या है फुर्सत नहीं गुज़रों के लिए
रहते हमराज़ हो आबिदों के लिए
आसमां शुक्र था आज की शाम भी
पर तू तनहा नहीं शोखियों के लिए
अब दफ़न दोस्ती दुश्मनी गम सभी
साँस औ ज़िन्दगी मनचलों के लिए
उस अब्र में बसी धूप थी छाँव थी
है ये कौसर नहीं मज़हबों के लिए
शोख जो फ़िर रहे कुछ नए के लिए
बंधते आगोश में मंज़िलों के लिए
ओंठ से छू दिया हमको शायर किया
तुम थे आशिक बने शायरों के लिए
तुम भी कह दोगे जब मिलोगे कभी
कि ये दोस्ती रहे दोस्तों के लिए
शुक्र था चाँद का रात को जग गया
अखतरों में छिपे रास्तों के लिए
चूमता रह गये तेरे हर लफ्ज़ को
तू मुसलमां बना आयतों के लिए
किस आगोश में सिमटा रह गया
रात बेनाम थी हौसलों के लिए
~ सूफी बेनाम
Sunday, February 28, 2016
Friday, February 26, 2016
Thursday, February 25, 2016
राह का मजमूँ समझेगा क्या
राह का मजमूँ समझेगा क्या
क्या कभी खुद से भी सुलझेगा क्या
दिन में हारा खुदी से था इन्सां
रात भर अब शर्त पे बदेगा क्या
दिल में जलती हुई नफ़स रख कर
राज़ फिर शौक कोई बनेगा क्या
खुद से मिल कर सफर में वीरां पर
राह भर तुझसे फिर बचेगा क्या
बह गयी शाम मय के प्यालों पर
होश का पैर ठहर सकेगा क्या
खुद से हारा है बारहा लेकिन
शर्त अब चीज़ तू बदेगा क्या
पास आ छू रही नज़ा अब क्या
जन्म दर जन्म प्यार करेगा क्या
~ सूफ़ी बेनाम
नज़ा - last breath
क्या कभी खुद से भी सुलझेगा क्या
दिन में हारा खुदी से था इन्सां
रात भर अब शर्त पे बदेगा क्या
दिल में जलती हुई नफ़स रख कर
राज़ फिर शौक कोई बनेगा क्या
खुद से मिल कर सफर में वीरां पर
राह भर तुझसे फिर बचेगा क्या
बह गयी शाम मय के प्यालों पर
होश का पैर ठहर सकेगा क्या
खुद से हारा है बारहा लेकिन
शर्त अब चीज़ तू बदेगा क्या
पास आ छू रही नज़ा अब क्या
जन्म दर जन्म प्यार करेगा क्या
~ सूफ़ी बेनाम
नज़ा - last breath
Monday, February 22, 2016
पलाश
पलाश के फूल को जब भी देखता हूँ तो एक जंग की याद आती है।
पलाशी की ऐतिहासिक लड़ाई को नाम पलाश के खिले जंगलों से मिला
पलाश का फूल जिसका रंग आसमान को आग की तरह रंगता है उसपे एक रचना :
गेसुओं में जो खिल रहा है रंग लाल आग सा
दमक रहा है आसमां में वो रक्त था पलाश सा
इसी तुण्ड के जंगलों में शहीद थे कही हज़ार
ओ मातृ तेरे लाल का रक्त खिला पलाश सा।
~ सूफी बेनाम
पलाशी की ऐतिहासिक लड़ाई को नाम पलाश के खिले जंगलों से मिला
पलाश का फूल जिसका रंग आसमान को आग की तरह रंगता है उसपे एक रचना :
गेसुओं में जो खिल रहा है रंग लाल आग सा
दमक रहा है आसमां में वो रक्त था पलाश सा
इसी तुण्ड के जंगलों में शहीद थे कही हज़ार
ओ मातृ तेरे लाल का रक्त खिला पलाश सा।
~ सूफी बेनाम
Sunday, February 21, 2016
हाथ मेरे लिखे कुछ अपने हैं
गिरह :
हाथ मेरे लिखे कुछ अपने हैं
जो न सच हो सके वो सपने हैं
मतला:
बादलों पर कहीं उलझते हैं
ख्वाब जो बार बार दहकते हैं
सूख कर फूल शाख पर तनहा
रोज़ गिरते हैं और बिखरते हैं
तुमसे पूछा नहीं कि क्या सोचा
रिश्ते कब पूछ कर के बनते हैं
चाहतों की नयी किताबत में
हर्फ़ हर रोज़ मिलने आते हैं
जाने इश्क़ या कुफ्र लेकर साया
रोज़ ख़्वाबों में तुझसे मिलते हैं
~ सूफी बेनाम
हाथ मेरे लिखे कुछ अपने हैं
जो न सच हो सके वो सपने हैं
मतला:
बादलों पर कहीं उलझते हैं
ख्वाब जो बार बार दहकते हैं
सूख कर फूल शाख पर तनहा
रोज़ गिरते हैं और बिखरते हैं
तुमसे पूछा नहीं कि क्या सोचा
रिश्ते कब पूछ कर के बनते हैं
चाहतों की नयी किताबत में
हर्फ़ हर रोज़ मिलने आते हैं
जाने इश्क़ या कुफ्र लेकर साया
रोज़ ख़्वाबों में तुझसे मिलते हैं
~ सूफी बेनाम
हमसफ़र
"हमसफ़र"
हर रोज़ की दौलत उजागर साथ तुम हो
हर सपने की क़ुर्बत चरागर साथ तुम हो
पहचान नहीं खुद इस इंसानी जस्बे की
आब-ओ-दाना तलब बनकर साथ तुम हो
~ सूफी बेनाम
"हमसफ़र"
तुम्हारे ज़र्फ़ की आजमाइश साथ मेरा
कभी कभी त्यौहारी उमड़ता साथ मेरा
चूड़ियों -जामदानी-अल्ताई चाहतों में
हमसफ़र तुझपर निखरता साथ मेरा
~ सूफी बेनाम
क़ुर्बत - nearness , चरागर - doctor, cure , आब-ओ-दाना - daily bread, ज़र्फ़ - endurance , जामदानी - type of bangladeshi saree
हर रोज़ की दौलत उजागर साथ तुम हो
हर सपने की क़ुर्बत चरागर साथ तुम हो
पहचान नहीं खुद इस इंसानी जस्बे की
आब-ओ-दाना तलब बनकर साथ तुम हो
~ सूफी बेनाम
"हमसफ़र"
तुम्हारे ज़र्फ़ की आजमाइश साथ मेरा
कभी कभी त्यौहारी उमड़ता साथ मेरा
चूड़ियों -जामदानी-अल्ताई चाहतों में
हमसफ़र तुझपर निखरता साथ मेरा
~ सूफी बेनाम
क़ुर्बत - nearness , चरागर - doctor, cure , आब-ओ-दाना - daily bread, ज़र्फ़ - endurance , जामदानी - type of bangladeshi saree
निदा की शायराना सफर को समर्पित
बहुत नाप कर रही कहानी है यारो
ग़ज़ल एक छुपी ज़िंदगानी है यारो
यहाँ रोज़ मुश्त-ए-ख़ाक इन्सां सफर में
सुना फिर एक निदा झपकी है यारों
किताबों के पन्नों से स्याही में बहकर
निदा की नज़्म कान घुलती है यारों
निदा था सफर भरमें मिसरों में बुन-बुन
क्यों वक़्त की गिरह उलझी है यारों
न कुछ मिल सका और कह भी न पाया
मुलाकात गुज़री फ़िज़ा सी है यारों
निदा था अधर पर ग़ज़ल झूमता सा
फिदा रह गयी अब प्यासी है यारो
~ सूफी बेनाम
निदा - call / sound , फिदा - devotion, मुश्त-ए-ख़ाक - handful of dust (human being)
ग़ज़ल एक छुपी ज़िंदगानी है यारो
यहाँ रोज़ मुश्त-ए-ख़ाक इन्सां सफर में
सुना फिर एक निदा झपकी है यारों
किताबों के पन्नों से स्याही में बहकर
निदा की नज़्म कान घुलती है यारों
निदा था सफर भरमें मिसरों में बुन-बुन
क्यों वक़्त की गिरह उलझी है यारों
न कुछ मिल सका और कह भी न पाया
मुलाकात गुज़री फ़िज़ा सी है यारों
निदा था अधर पर ग़ज़ल झूमता सा
फिदा रह गयी अब प्यासी है यारो
~ सूफी बेनाम
निदा - call / sound , फिदा - devotion, मुश्त-ए-ख़ाक - handful of dust (human being)
रात है परछाईयाँ
चाँद से जलकर दिखी है मुफ़लिसी चारों तरफ़
रंग-ए-रूह बद-रंग से सब पुश्ताह सी चारों तरफ़
रात है परछाईयाँ बिछ जायेंगी हर दीप तल
सर्द शामें जल रही है आशिकी चारों तरफ़
तन रहा तन पर लदा उर्यानियत हर मोड़ पर
फिर पाकीज़ा फ़िक्र जगकर अली चारों तरफ़
तुम से छू कर जल रहा अफ़कार भी फानूस बन
स्याह बन मश्कों में भरती तीरगी चारों तरफ़
~ सूफ़ी बेनाम
परतव - reflection, ज़िल्ल - shadow, मुफ़लिसी - poverty, पुश्ताह - pile/heap, उर्यानियत - nudity, पाकीज़ा - chaste, फ़िक्र - thought/ counsel, अली - high/exalted, फानूस - lantern, अफ़कार - meditation, तीरगी - darkness, मश्क़ - letter or creative work
रंग-ए-रूह बद-रंग से सब पुश्ताह सी चारों तरफ़
रात है परछाईयाँ बिछ जायेंगी हर दीप तल
सर्द शामें जल रही है आशिकी चारों तरफ़
तन रहा तन पर लदा उर्यानियत हर मोड़ पर
फिर पाकीज़ा फ़िक्र जगकर अली चारों तरफ़
तुम से छू कर जल रहा अफ़कार भी फानूस बन
स्याह बन मश्कों में भरती तीरगी चारों तरफ़
~ सूफ़ी बेनाम
परतव - reflection, ज़िल्ल - shadow, मुफ़लिसी - poverty, पुश्ताह - pile/heap, उर्यानियत - nudity, पाकीज़ा - chaste, फ़िक्र - thought/ counsel, अली - high/exalted, फानूस - lantern, अफ़कार - meditation, तीरगी - darkness, मश्क़ - letter or creative work
फलक सा खुला कब कफ़स कैद रहता
मतला :
मता बन बरसने को जी चाहता है
फिदा बन तरसने को जी चाहता है
फलक सा खुला कब कफ़स कैद रहता
गिरह बन चहकने को जी चाहता है
तू उस दौर का था मैं इस दौर का हूँ
दहर को मसकने को जी चाहता है
ये दिन-दिन के सौदे रातों के सपने
वफ़ा को बदलने को जी चाहता है
अदम रासतों पर कदम रख दिये जब
दमक कर चहकने को जी चाहता है
तू सिमटा नहीं एक लम्हे में बसर कर
सुफ़िआ बहकने को जी चाहता है
~ सूफी बेनाम
मता - wealth, फिदा - sacrifice/devotion, कफ़स - body, दहर - time/age, अदम - destruction/ annihilation .
~ सूफी बेनाम
मता बन बरसने को जी चाहता है
फिदा बन तरसने को जी चाहता है
फलक सा खुला कब कफ़स कैद रहता
गिरह बन चहकने को जी चाहता है
तू उस दौर का था मैं इस दौर का हूँ
दहर को मसकने को जी चाहता है
ये दिन-दिन के सौदे रातों के सपने
वफ़ा को बदलने को जी चाहता है
अदम रासतों पर कदम रख दिये जब
दमक कर चहकने को जी चाहता है
तू सिमटा नहीं एक लम्हे में बसर कर
सुफ़िआ बहकने को जी चाहता है
~ सूफी बेनाम
मता - wealth, फिदा - sacrifice/devotion, कफ़स - body, दहर - time/age, अदम - destruction/ annihilation .
~ सूफी बेनाम
इक़रार
गहराई में डूबना बेकार कर के आ गये
प्यार था दो सांस का व्यापार करके आ गये
कूप में मंडूक थे और मोहब्बात थी नयी
हम इबादत भी संग-ए-दार करके आ गये
मासियत में ना कभी मोती निराला खो जाये
इसलिये हम रिश्ता इसरार करके आ गये
है नहीं इज़हार ना इनकार अपनों की वफ़ा
ज़िन्दगी बेनामियत इक़रार करके आ गये
~ सूफी बेनाम
मासियत - sin , इसरार - conceal/preserve, इज़हार - disclosure/ demonstration , इक़रार - consent/ pledge .
प्यार था दो सांस का व्यापार करके आ गये
कूप में मंडूक थे और मोहब्बात थी नयी
हम इबादत भी संग-ए-दार करके आ गये
मासियत में ना कभी मोती निराला खो जाये
इसलिये हम रिश्ता इसरार करके आ गये
है नहीं इज़हार ना इनकार अपनों की वफ़ा
ज़िन्दगी बेनामियत इक़रार करके आ गये
~ सूफी बेनाम
मासियत - sin , इसरार - conceal/preserve, इज़हार - disclosure/ demonstration , इक़रार - consent/ pledge .
याद में चोट सहलाने से क्या फ़ायदा
सवालों से जी चुराने से क्या फ़ायदा
फ़िर मिलने मिलाने से क्या फ़ायदा
जब परछाइयों में मैल दिखने लगे
किसी गोरख बहाने से क्या फ़ायदा
मोड़ पे बेपरवाह टकरा जाओ सनम
याद में चोट सहलाने से क्या फ़ायदा
देख मोहब्बत की राह के कंकड़ों को
पाअों से रक्त बहाने से क्या फ़ायदा
राह से हटकर मिलो तो जानोगे तभी
नाम से पहचान बनाने से क्या फ़ायदा
छिड़ गयी गर फिर बहस अत्तीत की
फिर फुर्सत में बुलाने से क्या फ़ायदा
फ़िर मिलने मिलाने से क्या फ़ायदा
जब परछाइयों में मैल दिखने लगे
किसी गोरख बहाने से क्या फ़ायदा
मोड़ पे बेपरवाह टकरा जाओ सनम
याद में चोट सहलाने से क्या फ़ायदा
देख मोहब्बत की राह के कंकड़ों को
पाअों से रक्त बहाने से क्या फ़ायदा
राह से हटकर मिलो तो जानोगे तभी
नाम से पहचान बनाने से क्या फ़ायदा
छिड़ गयी गर फिर बहस अत्तीत की
फिर फुर्सत में बुलाने से क्या फ़ायदा
अब यूं मुह मोड़ने से इंकार नहीं होगा
बस हर्फ़ से दिलों का इज़हार नहीं होगा
अब यूं मुह मोड़ने से इंकार नहीं होगा
एक बार लगा ऐसा शायद तू हमारी है
धोखा हुआ जो हमको हर बार नहीं होगा
इसदिन की बातों को उस दिन दोहराना
इकरार हमारा फिर बेज़ार नहीं होगा
उस शाम नवेली थी जो आज पहेली है
हयात की कश्ती में पतवार नहीं होता
उस रोज़ मसीहा थे तेरे शाम के वादों पे
शामों का कौसर अब खुमार नहीं होगा
हम हौले चलते हैं अपने ही नसीबा पे
रफ़्तार जला कोई औज़ार नहीं होगा
हैं दिल सा नादां जो सांसों पे चलता है
है रूह ख्याला क्यों एतबार नहीं होता
~ सूफी बेनाम
Monday, February 15, 2016
आदमी आदमी पर फ़िदा हो गया
मिसरा:
इक मुलाक़ात में क्या से क्या हो गया
गिरह :
मौसमों की तरह बेवफ़ा हो गया
इक मुलाक़ात में क्या से क्या हो गया
मतला :
आज शहरों में ना जाने क्या हो गया
आदमी आदमी पर फ़िदा हो गया
हमने देखी थी आँखों में बेकसी कहीं
आदमी था और हम पर फ़िदा हो गया
सोचता था रास्ते का असर था कहीं
था पहियों पे चलता खुदा हो गया
जो ज़िंदा था फलक की हवाओं में कहीं
वो खुदा भी यहाँ बुतक़दा हो गया
आदमी था मरा आदमी के लिये
मर के ईसा यहाँ मुस्तफा हो गया
~ सूफ़ी बेनाम
बुतक़दा - temple of idols, मुस्तफा - God, फ़िदा - devotion, sacrifice.
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