Tuesday, December 22, 2015

प्याले मिट्टी थे ऐ कुम्हार-ए खुदा

ना मोहब्बात में रहते तुम्हारे ख़ुदा
ना ही इंसा को मिलते हमारे खुदा

रश्क़ इंसा को इंसा से इस-कदर रही
कि सूझा नहीं कैसे गुज़ारे खुदा

रईसों की नख़वत में उतनी ही थी
जितनी गरीबी असीरी बसारे खुदा

तेरे दिल के दरीचे पे  टूटे सनम
प्याले मिट्टी थे ऐ कुम्हार-ए खुदा

मेरे कदमों में नश्तर कई मंज़िलें
ज़िक्र तेरा है राहों पे वाह रे खुदा

क़ातिल तेरी तक़सीर में क्या क्या रहा
सच है देखो खुदी को मिटाते खुदा
~ सूफी बेनाम


रश्क़ - envy/ hatred, नख़वत - haughtiness/ pride, असीरी - imprisonment/ captivity, नश्तर - lancet/ trocar, तक़सीर  - sin/ crime.



Can be sung as हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम

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