Sunday, December 13, 2015

रात तेरी शुआओं पे जो बुझी नहीं



क़ाफ़िया अत

रदीफ़ हो गई है


ग़ज़ल मेरी अदालत हो गयी है

हसरत तेरी इरादत हो गयी है


शुआओं से बुझी नहीं जो रातों में

चाहतें कोरी खल्वत हो गयी है


खुलती है नींद हररोज़ रातों में

सांसें तेरी मसाफ़त हो गयी है


सिरहाने मेरे तेरा क़ल्ब है यूं तो

दर-हकीक़त अज़ीयत हो गयी है


खुदाई सवाल रदीफ़ काफ़िया में

चाहत मेरी मुरव्वत हो गयी है


बद हवासी में ख़्याल समेटे-बटोरे

नज़्म मेरी नदामत हो गयी है


था सूफिया मगर इतना नहीं था

ज़िल्ल तेरी क़यामत हो गयी है

~ सूफी बेनाम



इरादत - faith, शुआओं - light of eyes , खल्वत - to retire in solitude, नदामत - regret, क़ल्ब - centre, destination, अज़ीयत - suffering, दर-हकीक़त - in fact, ज़िल्ल - shadow, मसाफ़त - distant , मुरव्वत - modest. 

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