Friday, December 25, 2015

जब गुज़िश्ता से मिलने चले आयेंगे

कुछ जब गुज़िश्ता से  मिलने चले आयेंगे
तब शायद आइन्दा को गुज़रा हुआ पायेंगे

ग़ैर-मुतव्वल हो जाएँगी पहचानें पुरानी
लम्हे ज़िंदादिली के बेखुदी तलक सुलगायेंगे

मेरा खोया है अक्स कोई खोई तस्वीर क्या
किसी जनाज़े तेरे कान में फुसफुसा जायेंगे

एक ग़ज़ल जिसपे होने लगे थे बदनाम हम
बे रदीफ़ ही सही काफ़िया की आन निभायेंगे

समझो कि आतिश-ए-परछाई है हर वाक़ियाँ
फलक-ए-शरार को तहज़ीब-ए-रक्स सिखायेंगे

मुड़ के देखोगे कभी इस बार मिलने के बाद
उम्मीद को रिश्तों की  बेनाम शक्ल दिखायेंगे

~ सूफी बेनाम

ग़ैर-मुतव्वल - strange delay of payments or debts, गुज़िश्ता - past, आतिश-ए-परछाई - shadows caused by fire, फलक-ए-शरार - heaven's flash or gleams, तहज़ीब-ए-रक्स - manners of dance.

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