Tuesday, December 1, 2015

कुछ ख़ास मंज़िल-ए-शान हो गए

कुछ ख़ास मंज़िल-ए-शान हो गए
ख़ाक-ए-गुज़र आये आहान हो गए

कुछ सजे शाख के गुलाब की तरह
बाकी सब्ज़ पत्ता और अरमान हो गए

कुछ के आब बहे बंद आँख से मगर
कुछ ज़ार काजल में बदगुमान हो गए

इश्क़ में संभलते नहीं मासूम के कदम
शौक-ए-ज़ीन लाये कुछ खादान हो गए

दौर-ए-ख़ास लाये मंसूर के कदम
कातिल भी शिकार भी इंसान हो गए

हारे खुद की उम्मीद-औ-आरज़ू से
हाल-ए-शिकस्त कुछ  बेनाम हो गए
~ सूफी बेनाम




आहान - iron ; मंसूर - Sufi / God , ज़ार -gold, बदगुमान- distrustful, ज़ीन - saddle.

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