Wednesday, April 24, 2013

दस्तक



कई रातें बीताई, किसी टूटे सिरे
को ढूँढने की मजबूरी में
फिर मुझे यह लगता था
सपनो से रिश्ता टूट गया है.

अचानक, रात मुझे एहसास हुआ
अकेला कोई मशरूफ है जो मुझे जगाता है
उन अनजानी दूरियों से
कोई बेनाम मुझे बुलाता है.

सुबह के उजाले के निकट
जब लहु-मय से प्याले लदते हैं
तो दिल के अन्दर से दस्तक दे
कोई कुछ कहने को आता है .

इंसानी समझ की पैमाइश से अलग
उसकी अपनी भाषा है
मै ठीक से सुन नहीं पता
कुछ  ठीक से कह नहीं पता .

~ सूफी बेनाम





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