Wednesday, April 24, 2013

अलग-अलग


क्या  करें जब  फैसले  फासला  बढायें,
बदलने  की चाह  मुझमे  भी  है  पर थोड़ी अलग-अलग
है  हर  उम्र  की  परवाज़  अलग-अलग
हर  होने  का  है  सार  अलग-अलग
हर  मुद्दई  की  फ़रियाद  अलग-अलग
है  हर  रूह की  आवाज़  अलग-अलग
जीने  में  कोई  साथ  कैसा ?
जब  हो रहा है  हरेक का  इम्तेहान  अलग-अलग
है  हर दर्द की पुकार  अलग-अलग
तुम साथ में सॊये  हो पर
 तो वक़्त एक हमारा,
और ही फ़रियाद का मुकाम
कैसे  साथ में  जियेंगे  जब
है  हमारे जिस्म--जान  की  तमन्ना अलग-अलग
जो  यूं  मुलाक़ात  को जाती  है गर
घर  में  और  बिस्तरों  में
महोब्बत  में  घुलें  है फिर भी  देखो
है  एक  ही प्यार की  शक्लें अलग-अलग
है  हर  प्यार  का  सच  अलग-अलग
उठती  है हमारे  रूह  से महताब अलग-अलग


~  सूफी  बेनाम


No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.