क्या करें जब फैसले फासला बढायें,
बदलने की चाह मुझमे भी है पर थोड़ी अलग-अलग
है हर उम्र की परवाज़ अलग-अलग
हर होने का है सार अलग-अलग
हर मुद्दई की फ़रियाद अलग-अलग
है हर रूह की आवाज़ अलग-अलग
जीने में कोई साथ कैसा ?
जब हो रहा है हरेक का इम्तेहान अलग-अलग
है हर दर्द की पुकार अलग-अलग
तुम साथ में सॊये हो पर
न तो वक़्त एक हमारा,
और न ही फ़रियाद का मुकाम
कैसे साथ में जियेंगे जब
है हमारे जिस्म-ओ-जान की तमन्ना अलग-अलग
जो यूं मुलाक़ात को जाती है गर
घर में और बिस्तरों में
महोब्बत में घुलें है फिर भी देखो
है एक ही प्यार की शक्लें अलग-अलग
है हर प्यार का सच अलग-अलग
उठती है हमारे रूह से महताब अलग-अलग
~ सूफी बेनाम
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