तुम दस्तूर ही न समझे जीवन का
और अपने सुरूर में हम,
मूड- पाखंडी, भ्रामक- अचेत
अहम् - घमंड की मूरत,
पर हम दोनों हैं वहीँ खड़े.
मनोव्यथ-चेतन, वैवेकिक-चिंतन मन में
हम दावे के साथ जागरूक-सचेत हैं
तुम सोचा ही नहीं करते
तुम बेफिक्र निरुद्देश्य मंडराते जीव-मधु की लहरों पर,
पर हम दोनों हैं वहीँ खड़े.
है उमड़ धड़क घबराहट बैचैनी
मै अंतर्मन अकुलाई .
तुम पाशविक-जीव, अमिश्रित -स्वच्छ
जीवन में हो धीर धरे
पर हम दोनों हैं वहीँ खड़े.
इस शारीर-तीर-धनुष से हम
कब मीन-चक्षु को भेदेंगे
और भेदन विजयी हो क्या द्रौपदी पा जायेंगे
इस भ्रम-निहित, अशक्त-अर्जुन हम
हैं हम दोनों हैं वहीँ खड़े.
~ सूफी बेनाम
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