अवर्तमान
आदित्य के संयोग से
शरद ऋतू
के आगमन पर
शीत ऋतू
का विज्ञापन सा लेकर
हजारों
दीयों के से टिमटिमाते
हरश्रृंगार
के यह फूल
तुम्हारे
साथ की खुशबु पा कर
मेरे अंतर
मन में बस से गए हैं
अक्सर ही
मेरा मन
व्याकुल
हो जाता है हरश्रृंगार के इस
अभ्यास से
जीवन-दिन
का उजाला जब लुप्त हो जाता है
तो शायद
अपने लिए ही या उजाले के आभाव
को मिटाने
यह फूल
खिलते हैं और चढ़ती हुई लालिमा
को प्रणाम करके
बिखर जाते
है।
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