उस करवट क्यों पड़े हो
ज़रा तो करीब आओ
इस करवट हम हैं यहाँ
थोडा तो बदल जाओ।
बिस्तर में फासले तो कभी भी
बढ़ ना पायेंगे।
उम्मीदों, गिलों, शिकवों को जगह
इतनी न देदो यार।
पास पड़े इस बदन से
थोडा सा तो लिपटकर देखो
अँधेरे यह रास्ते अजीब हैं
थोडा मुझमे सिमट जाओ।
कुछ इल्जामो का लहू कालिख की तरह
चिपका है नज़र पर
अब एहसास तुम्हारा ही बाकी है
अपनी मुस्कराहट से रास्ता दिखाओ
उस करवट क्यों पड़े हो
ज़रा तो करीब आओ …....
~ सूफी बेनाम .
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