Wednesday, April 24, 2013

मै जीया वही जो बीत गया



यह जो राख समझकर- उड़ाकर कर तुम हाथ धोते हो ?
वोह आज भी हमारी रातें खरीदने का आज़र रखती है .

2012 को मेरा सालम ...

~ सूफी बेनाम


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