Monday, October 17, 2016

बहुत था दर्द लेकिन इस सफर में

1222 1222 122
बह्र - बह्रे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
अर्कान - मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फऊलुन
काफ़िया - ए (स्वर), रदीफ़ - बोलते हैं

गिरह:
बहुत था दर्द लेकिन इस सफर में 
बड़े चुप हों तो छोटे बोलते हैं

मतला :
पशेमाँ खत तुम्हारे बोलते हैं
हज़ारों मील पीछे बोलते हैं

उड़ानो की तुम्ही आगाज़ करना
हवाओं के ठिकाने बोलते हैं

उठो नाकामियों से जा के कह दो
अज़ल के भी हवाले बोलते हैं

वहीं परछाइयां बहकी तुमारी
किसी आँचल के साये बोलते हैं

उड़ा कुछ ज़ख्म से, ले कर दरिंदा
हलक उसके निवाले बोलते हैं

निगाहों में ज़रा ठहराव लाओ
शुआओं से वो लम्हे बोलते हैं

ज़रा गहराई में हमको भी खींचो
ये दरिया के किनारे बोलते हैं

कभी दिल भी बुझा रानाइयों पे
ज़ख्म मरहम से जलके बोलते हैं

ज़रा आगोश में भर लो हमें भी
सभी रातों को तारे बोलते हैं

शिकायत जो भी हो हमको बताना
सभी अख़बार वाले बोलते हैं

हमें भी नाम दे दो दिल लगालो
हमें बेनाम सारे बोलते हैं

~ सूफ़ी बेनाम


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