Friday, September 23, 2016

कर्म की बही में लिखी संवेदनायें

मेरे अन्तर्मन की निस्तब्धता
बाहरी व्याकुलता के नंगेपन को
अपने मखमली एहसास से
इस तरह ढक जाती है
जैसे खुले ज़ख्म पे भिनकती मखियों से
किसी लोबान्त का उपचार लगाती हैं।

मुसलसल कर्म की बही में लिखी संवेदनायें
आभासों को निस्तब्धता के
उस पार से, धरणी दबी आर सी सी की
राफ्ट फाउंडेशन के भीतर निहित
सत्य की सरिया को टोर से मज़बूत बनाकर
हर होनी हर घटना कर्म को पूर्वनिहित बनाती हैं।

प्रज्ज्वला मस्तिष्क के ठीक भीतर
एक स्थल से प्रफुल्लित हो कर
रीड़ की हड्डियों की इडा-पिंगला को झंकृत कर
सूक्ष्म अणु-निहित चेतनाओं को करके उजागर
कुछ नए दर्पणों को खोलती माया बस
मन-बदन-चेतन-चैतन्य के पात्र बदलती है।


~ सूफ़ी बेनाम



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