Friday, September 23, 2016

कदम अब बेवफा हैं इस कदर पर

अख़्तर होशियारपुरी का एक शेर है :

परिन्दों से रफ़ाक़त हो गई है
सफर की मुझको आदत हो गई है


इनके सानी मिसरे से गिरह दे कर ग़ज़ल में आगे बहने की कोशिश कर रहा हूँ :


कदम अब बेवफा हैं इस कदर पर
सफर की मुझको आदत हो गई है

मिली है धूल राहों में हमेशा
समुन्दर की वसीयत हो गयी है

फटी एड़ी लहू तर हैं ये धीगें
सफर दिल शौक नफ़रत हो गयी है

कि शायद दौर ऐसा था नहीं पर
नशेमन में बगावत हो गयी है

दबे मोती नदी नाले मिले पर
लहर खार -ए-हकीकत हो गयी है

सहर पर लालिमा फिर से चढ़ी जब
दिनों में कैद ग़फ़लत हो गयी है

रहे कुछ दोस्त बे परवाह से ही
दिल -ए-बेनाम हरकत हो गयी है


~ सूफ़ी बेनाम


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