Thursday, September 15, 2016

अस्ल की दूर तक उड़ाने हैं

मतला :
फिर नहीं लौट कभी पायेंगे
पल अगर बीतने दो आयेंगे


नोच निकले अगर सुबह कोई
रात इकसीर हम बनायेंगे


महफिलों में ग़ज़ब अकेलापन
हम नवां रोज़ मिल न पायेंगे


कल तलक इश्क़ के बहाने थे
मुश्क अब किस तरह निभायेंगे


रूज की शाम बज़्म बोसों की
साँस को किस तरह बुझायेंगे


अस्ल है रूह में छुपा गाफिल
बुत बदन तुझसे मिलने आयेंगे


प्यास को इस तरह नफ़ी मत कर
लत-तलब बन हमी सतायेंगे


अस्ल की दूर तक उड़ाने हैं
हम सुखन लिख फलक सजायेंगे


~ सूफ़ी बेनाम

( 2122-1212-22 )



No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.