Tuesday, October 6, 2015

अंदाज़ मरासिम के

कभी-कभी कुछ किताबें
साथी बन जाती हैं
हम उनको खोलते पलटते नहीं
बस साथ रखते हैं।
बंद पन्नों से सवाब मिलता है
उस अनुभूति का
जो आँखों से पलटती नहीं
न ही ख्याल से गुज़री है।
जीवन का हर वो लम्हा
जो खुद से संभलता  है
घिस-घिस के बयां करता
अंदाज़ मरासिम के ।
~ सूफी बेनाम


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