Thursday, October 29, 2015

हाथ तलब बैचैन किसी साथ को

दीदार-औ-उम्मीद सजाने लगे हैं
लम्हे भी अब गुनगुनाने लगे हैं

देखो तुमहारे दो दम के दो वादे
निभाने में हमको ज़माने लगे हैं

नफ़्स भूलना अंदाज़ ऐसा रहा
सफर से पहचान बनाने लगे हैं

हाथ तलब बैचैन किसी साथ को
तेरे लम्स से हिचकिचाने लगे हैं

भूलना मुनासिब रहा नहीं कभी
तुझको भी इंसान बताने लगे हैं

मुत्तवासित रहे नहीं अंदाज़ तेरे
हम ग़ैरों से उम्मीद पाने लगे हैं

इश्क़ भी खेल बड़ा बे-मुरवात रहा
कोई भूलाने कोई याद आने लगे हैं

मश्क़ भरती रह गयी ख्वाइश कोई
हम तुझे लिख के भुलाने लगे हैं

यादें भी कुछ चेहरे लगाने लगीं  
जब खुद को बेनाम बताने लगे हैं

~ सूफी बेनाम



मुत्तवासित - mediate , नफ़्स - soul, self ,
मश्क़ - writing or drawing letters .

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