Monday, October 26, 2015

ओट

बनाता साया है मेरे असल को अंजाम तलक
गगन में घूम के हर मौसम हर शाम तलक
ओट ले दीवार की बचता रहा परछाई तलक
शम्स तहे फलक मुझको ढूंढ़ता रहा शाम तक
~ सूफी बेनाम





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