Wednesday, August 7, 2013

निशान

तुम अपने  कुछ निशान
मेरे आस पास छोड़ गयी हो
कल रात का एहसास तुम्हारा
अब भी मेरे बदन पर
अपना अधिकार जताए रहता है
कुछ अँगड़ाईयां तो बिखेरी थीं
जब रौशनी ने आँखों को कुरेद था
और मै नहाया भी पर
जहाँ भी रगड़ता हूँ इस जिस्म को
पानी से बुझाने,
तेरे बदन की चाह महकती है
और ज़्यादा जलाती है,
सपने दिखाती है
एक महक रह गयी है जो
साथ तुम्हारे पैदा हुई थी
रात में चुम्बन पे जो किये थे वादे
वो दिन तक क्यों नहीं चल के आते ?
मेरी ख़्वाबों की डाली पे कलियाँ
लदी तो हैं, पर महकती नहीं
लगता है तेरे ख्वाब के भरोसे ने
मेरे बागीचे को
रात की रानी से सजाया है
लगता है रात फिर महकेगी
जब तुम करीब आओगे।

~ सूफी बेनाम


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