Sunday, August 25, 2013

तसवीर

मैंने कई बार कोशिश की
यहाँ उल्फ़त का ज़िक्र न हो
गुलों की बनावट का नसीब
कुछ खिले, कुछ मुरझाते रहे

फिजा ही गुनेहगार रही
इन फूलों के मुरझाने की
मुद्दई दफ़न ही सही
ज़िन्दगी के निशां देते रहे.

रेगिस* में क्यों दफ़न रहे
आशार-ए-जश्न के गवाह?
फिज़ा की कोई कली इनके करीब
भी तो मुस्कराहट बिखेरे

वो तो रहम था
जुबां का दिल-ए-दर्द  पे
कि सवालों से उभर कर निकला
और जवाबों में बंद तसवीर ही रही.

~ सूफी बेनाम



* रेगिस - used as desert; *आशार-ए-जश्न - celebration of life, liveliness

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