Monday, June 3, 2013

मेरी कहानी

कुछ चौदह साल का था मै
जब पहली बार जाना
एक जसबा जिससे हम
दिल की मुज्तरीबी को
लबो से लुड़का कर
शब्दों में बांध सकते है
और फिर खोलते समय
नये माइनों में जगाते हैं। (I learned poetry)

यह एहसास दबा रहा
मेरी हौसला- बुलंदगी पर
पर साथ देने को जगता
जब मुझे सबसे अकेला
या सबसे अलग पाता।
उधेड़ता रहा मेरी हरारश को
घुलता रहा मेरी नब्ज़ों में
उसका सुरूर उसकी उफ़न। (It helped at times)

जैसे मोहब्बत में
धीरे-धीरे करीबी बड़ते दो बदन
हर तरह का रोष, मुज़हामत
अपनी शक्सियत का पेचिदापन
रदद करते, उतार फेंकते हैं।
जैसे ख्यालों में ही बात हो जाना
और एक मुस्कान से दूसरी
मुस्कराहट का खिल जाना।
वैसे ही मानो
इस बे हरकती में
मै और वो जज़्बा एक हैं
अब अकेले में ही
परछाईयों को पलटना समझना
सोचना, बैठना, कहना
एक रंगीन महफ़िल के बराबर है
और नब्ज़ से ही नज़्म है। (poetry and breath is one after knowing life)

यहाँ इस किनारे से थोड़ा ही दूर
बहाव ज्यादा होता है
ज़रा भी पांव फिसले तो
पर तमाम कोशिशों के बाद
सांसों की रंजिश तोड़ना होता है
डूबना ही होता है
और आबाद है यहाँ
हर डूबने वाले।
काश एक और मौका मिले
फिर से पैदा होने का
ज़िन्दगी से हम एक बार आंखे
मिला के चलना चाहते हैं।
किसी गम किसी तजुर्बे पे नहीं
मासूमियत से डूबना चाहते हैं।
और बगैर इस जस्बे के
चुप-चाप जीना चाहते है। (I want to live this fullness from the beginning - even in my youth, all dreams should be LIVED, there should be no desires.)

~ सूफी बेनाम

मुज्तरीबी - restlessness ; मुज़हामत- inhibition.



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