Monday, June 17, 2013

एम्स्टर्डम - डी - वलेन्स डिस्ट्रिक्ट

बेपर्द शोलों की हैं मजारें यहाँ
नज़र ठहरी यहाँ हर इनायत पे है।
सर झुकता नहीं कि इबादत करें
पिघलते हैं इमान हर फेर पर।

इस कहकशाँ में कैसे ढूँढें ज़मीन
कही तो पांव पल को ठहरते नहीं
ए जिस्म मेरे अखलाक़ पर रहम कर
ये उधाडा हज़ारों सब बेजान हैं।

है शफ़ेअ शहवत की कर्कश यहाँ
मुफलिसी बाकिरदारों के चोगों में है
न कोई जान, न आशिक, न महबूब है
इन बेबस नर्म बाहों का जज्बा तो देख।

है मुनासिब यहाँ पर कोई भूल हो
और खुदाई के नखरों को मकबूल हो
क्यों न तू मुझको अपना तरीका बना
महफ़िल-ए-गुज़र थोड़ा सबात से चल।


~ सूफी बेनाम






कहकशाँ - Galaxy; अखलाक़- character; उधाडा - nudes; शफ़ेअ - one who argues; शहवत - sexual urge; कर्कश - sharp and rough edges; महफ़िल-ए-गुज़र - one who walks with you in the celebration of life; सबात - firmness.

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