Friday, February 24, 2017

फिर तराशेंगे जब हम मिलेंगे कभी

गिरह :
कर रही गुदगुदी वो निगाहें तेरी
कुछ किया जाए इन चुप्पियों के लिए

मतला :
दर्द श्रृंगार है प्रेमियों के लिए
हसरतें बुझ रही तल्खियों के लिए

एक ग़ज़ल में जुड़े मिसरे दो शेर के
फिर न हम तुम रहे बाज़ियों के लिए

इत्र से लद गयी नाज़नी वो लहर
ज़ुल्फ़ साधी जो थी बालियों के लिए

फिर न आहट थी दो धड़कने रह गयी
लब की प्याली रही चुस्कियों के लिए

डूबता ही गया, डूबता ही गया
आप ठहरे जो दो इश्कियों के लिए

फिर सिरहाने में इक, ताश से रात भर
शर्त बदती गयी शोखियों के लिए

राज़दा बन गये कुछ बेज़ुबाँ वाकिये
आप आवाज़ खामोशियों के लिए

कुछ था नायाब इस उम्र का बीतना
खेल चाहत बनी प्रेमियों के लिए

आज तक उस जगह से मैं लौटा नहीं
एक मुलाक़ात दो साथियों के लिए

फिर तराशेंगे जब हम मिलेंगे कभी
एक सदी खान है वादियों के लिए

~ सूफ़ी बेनाम


२१२-२१२- २१२-२१२


No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.