Thursday, October 3, 2013

नज़्म

अब तो भीग चुके
बरसात को
बादलों के गरजने
के पहले।

जाने क्या छूटता 
सा पीछे रहा 
एक  रोज़ जो आसमा 
था पहले। 

अजब एक इकरार को
ज़िन्दगी आगे बड़ी
जहाँ सब कुछ थमा-थमा
था पहले।

मेरे दिल के निशां 
महसूस तो कर 
ज़िन्दगी में तर्जुमा आने 
के पहले।

कुछ मुनासिब ना सही
एक नज़्म तो हो
और नये रास्ते समझ आने
के पहले।

~ सूफी बेनाम


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