Tuesday, October 8, 2013

कि ज़िन्दा हम भी हैं

इतने हलके में न लो,
कि ज़िन्दा हम भी हैं
थोड़ी रफ़्तार तो बदलो,
कि बेवक्त हम भी हैं।

निकालें रूह से रिश्ता,
हयात की तर्ज़ुमानी को
रहे नहीं वाबस्त माज़ी से,
कि गुनहगार हम भी हैं।

बना लें जुनू सा किसको,
बादे-मुखाल्फ़ि की चाहत है
बचश्मेतर सही पर भटके नहीं
किसी सलाफ़ के वारिस हम भी हैं।

तेरी आँखों से हो रिश्ता
मेरी नज़मो के सुरमे का
नर्म ज़ेरे-हिरासत की महक
को बेक़रार  हम  भी हैं।


~ सूफी बेनाम



बादे-मुखाल्फ़ि -  wind against the direction of movement sp of a boat, वाबस्त - attached,  माज़ी - past, बचश्मेतर - eyes drowned in tears, सलाफ़ - pious muslim sunni ancestors who lived within 400 years of prophet mohd., ज़ेरे-हिरासत - captive in a deep embrace, तर्ज़ुमानी - translation, हयात - life.

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