Wednesday, April 24, 2013

दर्द


वोह दर्द ही क्या जो स्याही मे बहे
जो बेलकीर किताबों पर अंगुलिओं से कलेमा कहे 
जो शब्दों के जाल बुन कर अँगारों सा सुल्गे
जो रिसती हुई दलीलों को वजाहत से सहे  
जो तसव्वुफ़ -इ-आतिश को आस समझे 
दर्द वो है जो सीने में चुभो के रखते है 
जो की एक बेपर्वाह नशीली आरज़ू के किनारे 
इक खामोश सौदा करते हैं 
और धीरे-धीरे रिसता है .

~ सूफी बेनाम

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