Friday, November 17, 2017

डायरी

अपने खालिपन को एक
डायरी के मानिन्द,
काग़ज़ बना के भेजेंगे,
ज़रा कुछ लिख दिया करना।
सादेपन पे बहादेना
नशा-ओ-खुमार अपना,
जो न कह पाओ किसी से,
हमीसे लिख दिया करना।

कभी इसको लुका देना
अपनी श्रिंगारदानी में,
कभी बटुए मे अपने
इसको घर दिया करना।
सधाना पननों को फँसाकर
काटियां अपनी,
रात सिरहाने से दबाकर
सुला दिया करना।

बहुत कुछ पूछना चाहेगा
तुमसे ये आवारापन,
तुमभी कलम बन कर रवां-में
बह लिया करना।


~ सूफ़ी बेनाम




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