Monday, March 13, 2017

होली - २०१७

रंग से रग को सींचा करते
मय से मधुरिम हौले- हौले
हो कर मौसम-योगित शायर
बहका करते गिरते-पड़ते

एक जुमले में खुद को गूंथे
रम्या-मोहन लीला करते
मिथ्यावादी हो कर शायर
खेलो स्याही में बहकर के

सावन बीता, तन भरमाये
देखो कैसी बदली लाये
भूखी कलमें बहका शायर
गजरी-पायल सब शरमाये

वृन्दावन का गौहर बनके
प्रियवर-गिरधर मोहन-राधे
नित-फागुन की ज्वाला शायर
यौवन चिंगारी दहकाये

असली-नकली मिलकर नाचे
सत-रंगी ज्वाला पर लहके
बनकर आफत खेलो शायर
रोकोगे तो जल जाओगे

हर गोरी संग होली खेले
लीला-कृष्णा-साथी ग्वाले
रमता जोगी सच्चा शायर
अनजाने हाथों से रंगके

भीषण तमन्ना रंगी साये
भीगे कपडे तन पे चिपके
प्यासी नज़रें रखता शायर
लिखता जाये बरसों जलके

रज-कञ्चन-कनु-प्रिया तरसे
आहों की टोली के सदके
सांसें-तृषित हमदिल-शायर
केसरिया रौनक पर बहके

झंझावट सदगुण सब भूले
इक प्याले को पलटा भागे
सरगम मदिरालय के शायर
पर-प्रियसी संग फगुआ गाये

मोहन की प्रियसी तू राधे
टेसू-रस पिचकारी भरके
सीधे तुझपे साधे शायर
आयुध-सब चाहत भर दागे।

~ सूफ़ी बेनाम





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