Monday, March 16, 2015

बदल जाते है रंग ठूँठ के, औ तुझे दिखता पलाश है ?

ये संग रंग-ए-पलाश है
नफ़स आसमां पे लिखा हुआ
हर रंग नहीं पलाश है
रिन्द-ए-मौसम पे जला हुआ।

तू समझ कि रंग औ ज़िन्दगी
कभी गुज़र नहीं किसी नाम के
वो  बेरौनक एक ठूंठ था
जो आज दिखता पलाश है।

ये शाम, ये जज़्ब बहार के
औ ये फूल भी पलाश के
ये खुद परास्त कुछ ख्वाब हैं
चाहे नाम दे या भूल जा।

~ सूफी बेनाम



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