Monday, December 12, 2016

वरदा

खैरियत बंदिशों में है तब तक
बह्र तूफ़ां जगा रही जब तक

आसरे जो रहा हवाओं के
वो सफीना नहीं मिला अब तक

दरमियां आप भी पहेली भी
नज़र तूफ़ां से जा मिली तब तक

डूबना इश्क़ में बेमानी था
मिल रही चाह गर हो मतलब तक

टूटने लग गये सभी अपने
आरज़ू हो गयी नफ़ी लब तक

मौत दो चार की हुई जिनको
घर नहीं शहर दे सका अब तक

छूट कर ज़ुल्फ़ से गिरा वरदा
आज तो खैरियत रहे शब तक।
or
छूट कर ज़ुल्फ़ से गिरा वरदा
आब -ओ -गिल अमन रहे शब तक।

~ सूफ़ी बेनाम

2122 1212 22 / 112

वरदा - red rose, बह्र - meter in poetry /ocean, सफीना - boat, नफ़ी - forbidden, denial, आब -ओ -गिल - water and earth - elements of nature


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