Thursday, January 7, 2016

मेरे बाद शायरी

कोई यूं गुनगुनाता है शामों को शायरी
ज़िंदा रखेगी मुझको मेरे बाद शायरी

हर शेर को गिरह तक छू कर देखा
उसे और भी छुएगी मेरे बाद शायरी

ज़िंदा है स्याह कागज़ जानता हूँ मैं
दहकायेगी मेरा रम्ज़ मेरे बाद शायरी

इतने दीवाने फिर भी सरगोशियों से दिन
शाम लबों से छलकेगी मेरे बाद शायरी

सांसों की भसक नब्ज़ सधी रही है रोज़
दीवानों की रक्तिम रहे मेरे बाद शायरी

उम्मीद तो यही थी किसी दर्द को कहे
लगता है होगी हमदर्द मेरे बाद शायरी

लम्हा नहीं अरसों है ज़िन्दगी के साथ
किसी हो के जियेगी मेरे बाद शायरी

अब तक जिसे ग़ज़ल में बांधता रहा
गीत बन खिल उठेगी मेरे बाद शायरी

अल्फ़ाज़ों की गिरह में गर तू भी बहेगा
तुझो डुबो चलेगी मेरे बाद शायरी
~ सूफी बेनाम



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