Monday, January 19, 2015

बेवक़ूफ़-ड्राइवर

गर मैं
ड्राइवर होता
तो शायद
मालिक की गाड़ी को
मालिक की समझकर
चलाता।

रोज़ साफ़ करता
जहाँ मालिक चाहता
वहां गाड़ी ले जाता।
जब-तक मालिक पेट्रोल डलवाता
तब-तक गाड़ी चलती
मैं बस तनखा में रह जाता।

पर जबसे तनखा बंद हुई है
खुद को मालिक
समझे बैठा हूँ ,
औकात बस
ड्राइवर की है
अपनी गाड़ी
समझे बैठा हूँ।

~ सूफी बेनाम









No comments:

Post a Comment

Please leave comments after you read my work. It helps.