Tuesday, November 19, 2013

ताज.…

कैसे बेवजह पिरोती हैं
ये नोकीली मीनारें
बादल के बेज़ार टुकरों को ?

कबसे  इस अब्याज़ पत्थर के
पाक दिल कि आगोश में
एक अधूरी महोब्बत की कब्र है बनी ?

क्यों  है ये झीने दुपट्टों सी
जालिओं से ढके सीने के
गुबार को ये गुम्बज़ सधा ?

है ये कैफ़ियत इंसानी हाथों की
या किसी खोज में तराशे
ये संगेमरमर के उजले टुकड़े ?

है  गुलज़ार  ये ताज
किसी फ़रियाद को
या मुझे है  ऐसा दीखता ?

जैसे किसी शौक़ीन शायर का
चिकन का बेसिलवट कलफ़ लगा कुर्ता
स्त्री कर पहनने को तैयार हो

और मेरे दिल का तसव्वुर  
किरणों कि थिरक से आँखों को
गजराए चारबाग़ कि खुशबु से चौंधियाने दे।

जाने  किस मिट्टी कि थी वो
स्तम्भ में दबे जिसकी महक
महोब्बत को दिल के मक़बरे तक खींच लाये।

~ सूफी बेनाम



तसव्वुर - conception, reflection.
स्तम्भ - plinth
गुलज़ार - flourishing
कैफ़ियत - intoxication
अब्याज़ - white
बेज़ार - unhappy, annoyed

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