तक़दीर के फैसले न मंज़ूर करता
गर हमदर्द कोई फ़रिश्ताई में होता
मैं नहीं जीता दिनो के फलसफों में
गर सबक दूरियों का स्याही में होता
भरता न ख़लाओं को वीरानगायी से
गर वस्ल लिखा आजमाई में होता
रास्तों को मंज़िल न समझता हमदम
गर दबा नक्शा मेरी किताबाई में होता
साहिल के रास्ते ही डूबता बेनाम गर
गर बेसब्र सहलाब तेरे अगोशाई में होता
फ़रिश्ताई - in angelic capacity/ control, फलसफा - philosophy, ख़ला - space/ infinite.
~ सूफी बेनाम
वस्ल - Union, ख़लाओं - endless space
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