शब्दों के पायाब में डूबते नहीं हैं हर किसी से
ग़ज़लों में जज़्ब छुपते नहीं हैं हर किसी से
मिसरों से बेहतर रहता इंसा का नेक इरादा
मुस्कान उभरती नहीं दिल से अब हर किसी से
ज़ेर-ओ-बाम को है उसने फिर रूज से जलाया
रुखसार हो गये हैं कीमिया उसकी ही हंसी से
बूंदों की छनक से हैं तलब आसमा बरस-ते
शफ़क़-ए-चमक से है ज़र-ए-ज़ेवर अब किसी से
तेरी रंग-ओ-बू में बसर है मेरी तलब के किस्से
हर ख्वाब था बसाया तेरी ज़ुल्फ़ की नादिरी से
बेनाम इस सिलाह की बेचैनीयाँ तो समझो
ग़ज़ल में नहीं मिलते मक़सद हर किसी से
~ सूफी बेनाम
पायाब – ankle deep water, ज़ेर-ओ-बाम – low and deep sound, रूज – rouge, कीमिया –
alchemy, रुखसार – cheek , शफ़क़-ए-चमक – evening twilight, ज़र-ए-ज़ेवर – golden jewellery, नादिर – priceless.
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