Tuesday, December 22, 2015

मैं इस डगर की भूल हूँ चाहत-तों का सिरा नहीं

मैं इस डगर की भूल हूँ चाहत-तों का सिरा नहीं
किसी से न कहना सखी कि क्यों तेरा हुआ नहीं

मेरी उमंग औ लालसा गर रिश्त-तों की भूल थी
मैं इंसानों की भीड़ में क्यों किसी का आसरा नहीं

हर इक निगाह पे टिकी रही आस जो ख्वाब की
कुछ हकीकत-तों की साज़िशें हैं ये कोई दुआ नहीं

हालाँकि जिगर की रेत पर कई नाम धुल गये
कान्हां से पूछूंगा सखी क्यों राज़ तेरा दबा नहीं

तू याद-दाश्त भूल सा या ज़मीर का मलाल था
क्यों मुझसे रूठ कर मेरा दिल कभी मिला नहीं

तेरी शिकायतें आदतें हैं मेरे बदन  की चाहतें
तस्बीह की कड़ी से हम वकियों का शिफ़ा नहीं

जिक्र था हर नाम पे  बेनामी का सिरा सजा यहाँ
इंसा से अलग मुझे क्यों कभी दिखा इंसा नहीं

~ सूफी बेनाम

डगर- path/ village road, आसरा - hope, कान्हां - youthful playful amorous Krishna, ज़मीर - conscience, तस्बीह - simile, शिफ़ा - healing/cure.



Can be sung as अभी न जाओ छोड़ के कि दिल अभी भरा नहीं

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