Sunday, May 19, 2013

सुबह की चाय


सुबह का समय है और इंतज़ार है,
एक चुम्बन का, जो रात का नशा खाली करे
आओ अपनी आगोश में भर लो.
इस बिस्तर की नमी में
तुम्हारी खुशबू की कमी है
कही आस पास हो तो चले आओ।

सुबह का समय है और इंतज़ार है,
तुम कहीं दिख नहीं रहे हो,
न ही कोई आहट, आवाज़ है
मैंने तुम्हारे लिए भी चाय छानी है,
इसमें डली लौंग की महक चढ़ रही है,
कहीं आस पास हो तो चले आओ।

~  सूफी बेनाम



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