Tuesday, May 21, 2013
कवि / शायर
जैसे मानो कोई मज़दूर,रेज़ा, रिक्शा वाला,
जलती धूप की दाघ के असर से
अक्सर ही अपनी साध-सुध खो देता है
दूर दरख्त की नीरव छाया, उसकी प्यास बुझाने को,
हाला की महक उसके पसीने की,
उभार उसके जीने का एहसास, उसको जीवन देती है।
या मानो कोई किसी उधार की छाओं तले,
प्रियसी के करीब बैठे-बैठे
एक संबंध-संबोध की आस लिए
उसके दुपट्टे के छोर से मुह ढक कर
अपनी व्यकुल्त जताने या छुपाने को,
फूल, बरसात, बादलों और पंछियों की बातें करते हैं
या फिर समझो कि किसी कसक
को अपने रूंधे गले में दबाये
उत्तेजनीय रोग़न से भीगा लिबास ओढ़े
बंद कमरे की खलिश में अकेला कोई
एक माचिस को अपने दिल की बात कहे
जिस की लपट से, चिंगारी से वोह शांत होगा।
या जैसे कोई बच्चा, खेल कर थका हुआ
अपनी भूख, अपने कपडे,
अपनी हालत शक्ल और अंदाज़ से बेसुध,
बिस्तर पर जा गिरता है या बिखरता है
और खुली आँखों से रौशनी की लहक पे
नींद में घुल जाता है।
ऐसे ही मानो कभी कोई
बे -ख्याल कुछ बे - आज़म कुछ गुनगुनाये
या फिर कोई फ़रेबी दिन को रात कहे,
और अपनी बीवी को ख्वाब दिखा के झुठलाये
या फिर कोई बेवजह, सच के आगे अपना झूठ जोड़ कर बोले
तो समझो वोह एक कवि है, शायर है .
कुछ लिख पाते हैं, कुछ शब्दों में डूब जाते हैं
कुछ कह पाते हैं, कुछ जी जाते हैं।
~ सूफी बेनाम
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