Monday, May 20, 2013

सुना है तुम परेशां हो



तुम्हारी ही पलकों पे पलते हैं
साज़  मेरे सपनों  के
सुना  है  तुम परेशां हो
आज मेरी ज़िन्दगी से
बताओ तो क्या मिलेगा तुमको
हमसे खफा होके ?

मै जी ना पाऊँगा कभी बेवफ़ा होके
क़ुसूर किसका है ?
यह हम नहीं जानते
अगर हम दोहरे होते
तो तुम्हारी आँखों के मोती
इस जहान से क्यों प्यारे होते ?

कैसे जीयोगे इस दुनिया में
हम से जुदा होके
किन आसुओं के सिरहाने
किस जिस्म की खलिश पर
बीतेंगी ये रातें
भूल मेरी रूह पर ली सौगात लेकर।

पर अगर कभी ऐसा लगे तुमको
कि साथ जीने में वो महक नहीं रही
या उन फ़िरदौसी चाहत में
जिसमे दिन -रात बहके थे
कोई खराई नहीं थी
तो भूल कर मुझको जीवन का रास्ता चलना।

शायद मैंने ज़िन्दगी के
कुछ सबक अधूरे छोड़ दिए
शायद एहसास यादों में जीने का हो अभी बाकी
और उनमे ही जीवन हो एक कसक लेकर
इतना बस मालूम हमको है
जब भी नाम आयेगा तुम्हारे दीवानों का
तो सब निशां मुझपर ही होंगे।



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