दिल एक शिकारगाह है
हसरतों का जंगल घना है
मोहोबत्तें यहाँ आज़ाद घूमती हैं
तीर की हसरत दांत की छाप ले कर जीती मरती हैं।
अभी-अभी तो यह जंगल धुला ह है धूप में
हसीन वादियों और शर्मीले झरनों से लदा हुआ है
कहीं उड़ती चिड़िया कहीं बचपन है
शाम ढलते ही यहाँ कोहराम सा मच जाता है।
मोहोबत्तें - जानवर एक होड़ में
क़त्ल की परछाईयों में गुज़ारा करती हैं
हसरतों का जंगल घना है
यहाँ सिर्फ शिकार की ललकार सुनाई देती है।
दूर बैठा दिल की शिकारगाह में
मै एक शिकारी साध लगाये
भालू की खाल, भैंसे के सींग, शेर के सर के बीच
नक़्शे मचान पर अपने कच्चे तीरों को धार दे रहा हूँ
~ सूफी बेनाम
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