कैसे मिलेंगे तुमसे ,
फिर घुल घुल के।
कैसी सुबह होगी,
जब मिट कर के जियेंगे।
रास्ता लम्बा बहुत था,
और इमान बने थे गिर -गिर के।
कैसा सफ़र था यह,
यह धुआं फिर उठ रहा है।
उसकी महक देह्केगी,
मेरी रग-रग से।
कैसे मिलेंगे तुमसे ,
फिर घुल घुल के।
~ सूफी बेनाम
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