वज़्न - 2122 2122 212
अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
बह्र - बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ
क़ाफ़िया - आया
रदीफ़ - देर तक
मशहूर शायर आदरणीय नवाज़ देवबंदी जी के मिसरे में गिरह दे कर ग़ज़ल में उतरने की कोशिश :
अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
बह्र - बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ
क़ाफ़िया - आया
रदीफ़ - देर तक
मशहूर शायर आदरणीय नवाज़ देवबंदी जी के मिसरे में गिरह दे कर ग़ज़ल में उतरने की कोशिश :
मोड़ वीराने पे रुकना हमसफ़र
धूप रहती है न साया देर तक
मतला :
ख्वाब का दर खटखटाया देर तक
रात ने हमको नचाया देर तक
करवटों में पल रहे थे सपने जो
अदब का मतलब सिखाया देर तक
आस एक सोकी थी सिरहाने ने यूं
पास रहकर दिल जलाया देर तक
सच चुभा करते नहीं पैरों में जो
झूठ बन कर फिर रुलाया देर तक
साँस जब भी आशना मिलती नहीं
अखतरों ने टिमटिमाया देर तक
ख़्वाब खुद नहीं चल पाते कभी
रात कर्ज़ों को चुकाया देर तक
साथ तेरा फिर पहेली था बना
महज़ एक वादा निभाया देर तक
~ सूफ़ी बेनाम
धूप रहती है न साया देर तक
मतला :
ख्वाब का दर खटखटाया देर तक
रात ने हमको नचाया देर तक
करवटों में पल रहे थे सपने जो
अदब का मतलब सिखाया देर तक
आस एक सोकी थी सिरहाने ने यूं
पास रहकर दिल जलाया देर तक
सच चुभा करते नहीं पैरों में जो
झूठ बन कर फिर रुलाया देर तक
साँस जब भी आशना मिलती नहीं
अखतरों ने टिमटिमाया देर तक
ख़्वाब खुद नहीं चल पाते कभी
रात कर्ज़ों को चुकाया देर तक
साथ तेरा फिर पहेली था बना
महज़ एक वादा निभाया देर तक
~ सूफ़ी बेनाम
No comments:
Post a Comment
Please leave comments after you read my work. It helps.