उस दो-चौबीस की मुस्कराहट को सुबह चार बजे देखा। अचेत बंद आंखों के भीतर ख्याल को खुद-आगोश में कसे रात के दर्पणों से अनभिज्ञ निद्र-बोध संवाद की पटरियों पर सरकती हुई पुराने पते पर ही पहुंची होगी। अब उसको कौन बताये कि वो चाँद से लौट आये। ~ सूफ़ी बेनाम
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