Wednesday, October 19, 2016

निद्र-बोध

उस
दो-चौबीस की मुस्कराहट को
सुबह चार बजे देखा।
अचेत
बंद आंखों के भीतर
ख्याल को खुद-आगोश में कसे
रात के दर्पणों से अनभिज्ञ
निद्र-बोध संवाद की पटरियों पर
सरकती हुई
पुराने पते पर ही पहुंची होगी।
अब उसको कौन बताये
कि वो
चाँद से लौट आये।
~ सूफ़ी बेनाम

 

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