वज़्न - 2122 1212 22 / 112
अर्कान - फाइलातुन मुफ़ाईलुन फैलुन
बह्र - बह्रे खफी़फ मुसद्दस मख्बून
काफ़िया - ई ( स्वर ); रदीफ़ - क्या है
मिसरा....
"हमसे पूछो कि खुदकुशी क्या है"
गिरह :
महज़ सांसों में ज़िन्दगी क्या है
हम से पूछो कि खुदकुशी क्या है
मतला :
हसरतें इस कदर दबी क्या है
दिल न टूटा तो आदमी क्या है
ख़्याल की ख़्याल पर मीनारें सौ
अब पता क्या कि आखिरी क्या है
काफिये काम अब नहीं आते
बे-बहर नज़्म फिर सजी क्या है
फूस की छत तले जो ज़िन्दा थे
उनसे पूछो कि मौसकी क्या है
शायरी काम हैं अदीबों का
कौन समझे ये काफ़िरी क्या है
नफ़रतें दासतां बनी अक्सर
इश्क़ में खोई ज़िन्दगी क्या है
कोई तिनका हवा से पूछे तो
आज फिर सज के वो चली क्या है
ग़र्क़ चाहत पे और नफ़रत पे
कौन जाने ये मुद्दयी क्या है
फैसले इस तरह बढ़ायेंगे
आसमाँ और ये ज़मी क्या है
आज बेनाम को नहीं रोको
खुद समझने दो दिल्लगी क्या है
~ सूफ़ी बेनाम
अर्कान - फाइलातुन मुफ़ाईलुन फैलुन
बह्र - बह्रे खफी़फ मुसद्दस मख्बून
काफ़िया - ई ( स्वर ); रदीफ़ - क्या है
मिसरा....
"हमसे पूछो कि खुदकुशी क्या है"
गिरह :
महज़ सांसों में ज़िन्दगी क्या है
हम से पूछो कि खुदकुशी क्या है
मतला :
हसरतें इस कदर दबी क्या है
दिल न टूटा तो आदमी क्या है
ख़्याल की ख़्याल पर मीनारें सौ
अब पता क्या कि आखिरी क्या है
काफिये काम अब नहीं आते
बे-बहर नज़्म फिर सजी क्या है
फूस की छत तले जो ज़िन्दा थे
उनसे पूछो कि मौसकी क्या है
शायरी काम हैं अदीबों का
कौन समझे ये काफ़िरी क्या है
नफ़रतें दासतां बनी अक्सर
इश्क़ में खोई ज़िन्दगी क्या है
कोई तिनका हवा से पूछे तो
आज फिर सज के वो चली क्या है
ग़र्क़ चाहत पे और नफ़रत पे
कौन जाने ये मुद्दयी क्या है
फैसले इस तरह बढ़ायेंगे
आसमाँ और ये ज़मी क्या है
आज बेनाम को नहीं रोको
खुद समझने दो दिल्लगी क्या है
~ सूफ़ी बेनाम
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