चट्टान को चट्टान की
नोकीली पेचीदा
चढ़ाई पर धकेलना
वैसे ही है जैसे
ढलती हुई उम्र में
मोहब्बत निभाना
और जैसे
सांसों के दरमियाँ ज़िंदा से
ज़िन्दगी समझना समझाना।
चट्टान को चट्टान की
चढ़ाई पर धकेलना
संभव है मगर
आलिम कहते है
थोड़ा गोलाई से
हौले-हौले।
~ सूफ़ी बेनाम
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