ज़रा कुछ देर और बसर जाने दे मुझे
एक किस्सा बन के मिलने आऊंगा।
गर ग़ज़ल के सिरे पे अटकी मेरी सांसें
तो दुसरे पे तेरा नाम उभर के आयेगा।
वो शेर जो दिक्कत तेरे लम्हों को हैं
उनको बुनने में मुद्दावा भरमायेगा ।
हैं वाकिया कई जिनका ज़िक्र नहीं
तू पढ़ेगा कभी तो शायद समझ पायेगा।
उलझनों की यातनायें क्या काम थीं
इसपर वो तन्हा डुबो के जायेगा ।
कुछ देर इस तन्हाई ने सताया मुझे
कुछ रुस्वा तेरा जीस्त तड़पायेगा।
कभी तू मेरी आँखों में उत्तर के तो देखो
एक अंगार की भसक को छू जायेगा।
एक दिन बेफिक्र-आज़ाद परवाना कोई
तुझसे मिलने मेरी रज़ा बन के आयेगा।
तब शायद मेरी तलब का कोई आंसू
इस कदर लिपटकर उस पे बह जायेगा।
तुम समझ लोगे लम्हों का दर्द बेहतर
मुझपर शायद एक पन्ना पलट जायेगा।
कोई दिलासा रिश्तों में रोकता था मुझे
कोई मिसरा तुझे आज़ाद कर दिखलायेगा ।
~ सूफी बेनाम
एक किस्सा बन के मिलने आऊंगा।
गर ग़ज़ल के सिरे पे अटकी मेरी सांसें
तो दुसरे पे तेरा नाम उभर के आयेगा।
वो शेर जो दिक्कत तेरे लम्हों को हैं
उनको बुनने में मुद्दावा भरमायेगा ।
हैं वाकिया कई जिनका ज़िक्र नहीं
तू पढ़ेगा कभी तो शायद समझ पायेगा।
उलझनों की यातनायें क्या काम थीं
इसपर वो तन्हा डुबो के जायेगा ।
कुछ देर इस तन्हाई ने सताया मुझे
कुछ रुस्वा तेरा जीस्त तड़पायेगा।
कभी तू मेरी आँखों में उत्तर के तो देखो
एक अंगार की भसक को छू जायेगा।
एक दिन बेफिक्र-आज़ाद परवाना कोई
तुझसे मिलने मेरी रज़ा बन के आयेगा।
तब शायद मेरी तलब का कोई आंसू
इस कदर लिपटकर उस पे बह जायेगा।
तुम समझ लोगे लम्हों का दर्द बेहतर
मुझपर शायद एक पन्ना पलट जायेगा।
कोई दिलासा रिश्तों में रोकता था मुझे
कोई मिसरा तुझे आज़ाद कर दिखलायेगा ।
~ सूफी बेनाम
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