चुप बैठे एक कमरे के कोने-किनारे मौन हैं
पच्चीसवीं सालगिरह पे रिश्ते ये प्यारे मौन हैं।
दर्द -ए-मोहब्बात से हर शिकायत कर चुके
गुजरने का अंदाज़ देखो जिस्म हमारे मौन हैं।
हर उलझन पे अटकते हुए कहीं उतरे थे हम
गिरह खुल चुकी फिर भी सपने सरे मौन हैं।
आज पैसा है ईंधन है गाड़ी की मनमौजी का
रास्ते सब मौन हैं, मनसूबे तुम्हारे मौन हैं।
पसंद नहीं मुझे इन कागज़ों पे लिखना तुम्हारा
आज जितना भी लिखो पर सितारे मौन हैं।
चुप बैठे एक कमरे के कोने-किनारे मौन हैं
पच्चीसवीं सालगिरह पे रिश्ते ये प्यारे मौन हैं।
~ सूफी बेनाम
पच्चीसवीं सालगिरह पे रिश्ते ये प्यारे मौन हैं।
दर्द -ए-मोहब्बात से हर शिकायत कर चुके
गुजरने का अंदाज़ देखो जिस्म हमारे मौन हैं।
हर उलझन पे अटकते हुए कहीं उतरे थे हम
गिरह खुल चुकी फिर भी सपने सरे मौन हैं।
आज पैसा है ईंधन है गाड़ी की मनमौजी का
रास्ते सब मौन हैं, मनसूबे तुम्हारे मौन हैं।
पसंद नहीं मुझे इन कागज़ों पे लिखना तुम्हारा
आज जितना भी लिखो पर सितारे मौन हैं।
चुप बैठे एक कमरे के कोने-किनारे मौन हैं
पच्चीसवीं सालगिरह पे रिश्ते ये प्यारे मौन हैं।
~ सूफी बेनाम
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