मेरे कुछ दोस्त जो
दो-चार साल में
मिलने चले आते हैं,
बहुत तकनीक से
लड़कपन में उतार ले जाते हैं।
दो पल में २०-२५ साल का सफर
पार कर लेते हैं और
चलते चले जाते हैं।
पर शायद और जवानी
किसी को रोक नहीं पाती,
कोई संभालता नहीं है,
कोई उम्रदार हो जाता है।
मुलाकात कुछ घंटों की
पोशीदा मुस्कराहटों में ग़ुज़र करती है
और उसी में छिटक जाती है।
बातों में किस्से हर बार नये होते हैं
कोई कुरेदता है, कुछ नया पंगा लेता है।
पर सीख हर एक यही ले के घर जाता है
शिफ़ा तजुर्बों का, हर एक
अपने बचपन को ढूंढ़ लाता है ।
~ सूफी बेनाम
दो-चार साल में
मिलने चले आते हैं,
बहुत तकनीक से
लड़कपन में उतार ले जाते हैं।
दो पल में २०-२५ साल का सफर
पार कर लेते हैं और
चलते चले जाते हैं।
पर शायद और जवानी
किसी को रोक नहीं पाती,
कोई संभालता नहीं है,
कोई उम्रदार हो जाता है।
मुलाकात कुछ घंटों की
पोशीदा मुस्कराहटों में ग़ुज़र करती है
और उसी में छिटक जाती है।
बातों में किस्से हर बार नये होते हैं
कोई कुरेदता है, कुछ नया पंगा लेता है।
पर सीख हर एक यही ले के घर जाता है
शिफ़ा तजुर्बों का, हर एक
अपने बचपन को ढूंढ़ लाता है ।
~ सूफी बेनाम
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